आधा जीवन

आधा जीवन गुज़र गया है

आधा जीवन बाकी है

एक हाँथ में कलम उठी है

एक हाँथ में साकी है

 

कल तक जिस्म हमीं से ज़िंदा

आज हुए हम बेगानें

हमनें सारी उमर लुटा दी

बिखर गया वो क्या जानें

उसनें छोड़ा बीच भंवर में

क्या ही रश्म अदा की है

आधा जीवन गुज़र गया है

आधा जीवन बाकी है

एक हाँथ में कलम उठी है

एक हाँथ में साकी है

 

आसमान से मिली धरा पर

हम बिछड़े बंजारों सा

कहनेंं को पत्थर थे हम पर

जलते हैं अंगारों सा

बहती नदियां पूछ रहीं है

क्या ये आग वफ़ा की है

आधा जीवन गुज़र गया है

आधा जीवन बाकी है

एक हाँथ में कलम उठी है

एक हाँथ में साकी है

 

दो पैसे का कलम हूं सही

इक पल में आग लगाता हूं

तन का सारा ख़ून जले पर

कागज़ पे दोहराता हूं

अक्षर अक्षर बोल रहें हैं

मर्जी आज खुदा की है

आधा जीवन गुज़र गया है

आधा जीवन बाकी है

एक हाँथ में कलम उठी है

एक हाँथ में साकी है

 

 

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