प्यार होता इबादत रब की गर तुम दिल से कर लेते,
तो यूं सरेआम फिर हमको कभी रुसवा नही करते।
कभी जो दर्द की बाते सुनाई थी तुम्हे मैने,
उठाकर हाथ पत्थर मुझपे फिर फेंका नही करते।
मेरे पैरो में कांटो से बहा दहलीज पर जो खू
कभी मेंहदी कभी फिर उसको तुम महावर नही करते ।
न चाही थी कोई जागीर न चाही थी मलकियत,
चुराकर मेरी अस्मत तुम उसे बेजा नही करते।
अंधेरा जिंदगी का जब कभी घनघोर होता है,
छुड़ाकर हाथ रोशनदान को ढूंढा नही करते।।
पूनम सिंह भदौरिया
दिल्ली