उदासी कई दिनों से भूखी थी,
चुपचाप आई,
धीरे-से मेरे अंतर्मन में समा गई।
हर खुशी का स्वाद चखकर,
दिल के कोने में छा गई।
बिना मेरी इजाज़त के
पहले मेरी मुस्कुराहट को खा गई।
फिर जो सपने पलकों पर देखी थी,
उसे छीनकर ले गई।
जो हंसी अधरों पर सजाई थी,
उसे भी ख़ामोश कर गई।
मेरी ज़िन्दगी के सभी रंगीन पलों को बेरंग कर गई।
हां, उदासी वाकई में बहुत भूखी थी,
मेरी सारी खुशियां खा गई।
Viñi ✍🏻