एक बेटे की व्यथा

सुनो मेरी माँ – सुनो मेरी माँ, मेरी बात सुनो मेरी माँ 
थका दिया जीवन के पथ ने, फिर गोदी में लो मेरी माँ 

हृदय को अपने पत्थर कर एक बात तुम्हें बतलाता हूं 
सुनकर माँ तुम दु:खी ना होना बेटे की व्यथा सुनाता हूं 

माया के घनघोर अंधेरे मुझको बहुत डराते हैं 
ईर्ष्या द्वेष से भरे हुए ये लोग बहुत ही सताते हैं 

अपने ही दुश्मन से मिलकर ऐसी आग लगाते हैं 
झूठ को अपने सच कहते और सच को झूठ बताते हैं 

उनके झूठ को सच कह जाऊं ऐसी मेरी रीत कहां 
उनके झूठ को साबित कर दूं उसमें मेरी जीत कहां 

माँ तुम ही तो कहती हो की सच का पालन करते रहना  मंजिल हो कितनी दूर पर सच की राह पर चलते रहना 

सुनो मेरी माँ इस दुनिया में ना सच का कोई मोल रहा  दौलत शोहरत की खातिर अब झूठ है सच से खेल रहा 

इस सच और झूठ के फंदे में ये लाल तुम्हारा फसता है 
इस व्यथा में जब मैं रोता हूं बेदर्द जमाना हसता है 

इस व्यथा को लिखते-लिखते आंसू की नदियां बहती है 
मन मेरा विचलित होता है और कलम ये मेरी कहती है 

मतलब कि ये दुनिया सारी झूठा ये संसार है माँ 
झूठे सारे रिश्ते नाते सच्चा तेरा प्यार है माँ 

दोस्त बहुत है इस दुनिया में पर सच्चा कोई यार नहीं 
झूठी प्रीत दिखाते हैं सब किसी का सच्चा प्यार नहीं 

ये वहम है या फिर परम सत्य है समझ नहीं मैं पाता हूं सुनकर माँ तुम दु:खी ना होना बेटे की व्यथा सुनाता हूं 

 

                       – भारत मौर्या 

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