कभी सहारा बनी तुम्हारी यादें।

तो कभी साहस बनी तुम्हारी बातें

जब -जब खुद को तन्हा पाया है

तब -तब मेरे दिल ने साथ तुम्हारा पाया है…

 

मैं खुद को खोल सकता हूँ

राज़ अपने सारे तुम्हें बता सकता हूँ

मगर हाल दिल का बयां करने से घबराता हूँ

शायद तुम्हें खोने से मैं डरता हूँ..

 

तुम्हारी बाहों में लिपट कर

जी भर कर रोना चाहता हूँ

दर्द मैं अपना भुला कर

रख कर सर अपना गोद में

तुम्हारी सोना चाहता हूँ….

 

जुल्फों से तुम्हारी मैं खेलना चाहता हूँ

पकड़ कर हाथ तुम्हारा

कदम से क़दम मिला कर चलना चाहता हूँ

साथ मिलकर गीत प्रेम के गुनगुनाना चाहता हूँ

जीवन का हर उतार -चढ़ाव

तुम्हारे साथ मैं देखना चाहता हूँ।

 

~अभिषेक सिंह अभि 

 

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