मायने जो भी थे प्रेम के

वे बिछड़कर समझ आ गए 

 

ख्याल था नेह था एक दूजे का पर 

प्रेम है या नहीं ये समझ ना सके 

भावनाएं हमारी पहेली रहीं 

जो पहेली किसी से सुलझ ना सके

 

इक पहेली को सुलझाने में 

जिंदगी को ही उलझा गए

मायने……………………

 

आज तक प्रेम हमको दिखावा लगा

प्रेम को वासना हम समझते रहे 

साफ नीयत नहीं देख पाए कभी

एक चेहरे पे जां हम छिड़कते रहे 

 

प्रेय आंखों से ओझल हुए

और उर में सतत छा गए 

मायने…………………..

 

त्याग से प्रेम बढ़ तो गया था मगर 

यातनाओं से ये जिंदगी भर गई

प्रेय को दूर जाता हुआ देखकर 

श्वास चलती रही आत्मा मर गई 

 

जाते जाते वो मन को मेरे 

मोम की तरह पिघला गए

मायने…………………..

 

— सनी सिंह

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