मेरे जीते जी रो लेता ,तो मैं मरता भला ही क्यों,
लौटकर आने की चाहत है पर मैं आ नही सकता।
क्यों गमगीन रहते हो , रहो न पहले जैसे तुम,
तुम्हारे चेहरे पर मातम सा अब अच्छा नहीं लगता।
तसब्बुर में तेरे शामो शहर मैने दिन गुजारे थे,
तुझे क्या होगया जो मेरे बिन अब रह नही सकता।
तेरी राहों को तकती थी निगाहे मेरी हर सूं तब,
कि क्यों बैठा है चौराहे पे, मुझे जब पा नही सकता।।
पूनम सिंह भदौरिया
दिल्ली