कल तक अश्रुधारा थी आज उन आंखों में अंगारे जागे
लक़ड़बग्घों का झुंड खड़ा है भारत के शेरों के आगे
भारत मां के आंचल पर एक दाग भी नहीं लग पावे
जागो हिंदुओं ऐसे जागो कि सारा ब्रह्माण्ड जागे
जिन आंखों को लाल होना था उन पर अब पर्दा पड़ा है
छप्पन इंची सीना भी आज सिकुड़ कर कहीं दूर खड़ा है
ले एकलिंग की शपथ देश के वीरों का स्वाभिमान जागे
जागो हिंदुओं ऐसे जागो कि सारा ब्रह्माण्ड जागे
पर आस तजो वीरों प्यारे अब आंखों में अंगारे हो
रक्त रगों में उमड़ पड़े केसरी में रंगे सारे हो
पृथ्वी प्रताप के अंशज तुम, शिवाजी सा जुनून जागे
जागो हिन्दू ऐसे जागो कि सारा ब्रह्माण्ड जागे
कंचन कोमल तन पर अब अस्त्र शस्त्र का जत्था साजे
हर हाथों में तलवारें हो, सब बन कर रणचण्डी नाचे
हर हिन्दू नारी शक्ति में महाकाली का रूप जागे
जागो हिंदुओं ऐसे जागो कि सारा ब्रह्माण्ड जागे
सहनशीलता क्षमावान की आदत को अब त्यागा जाए
बर्बरता की हद हुई अब गांडीव हाथों में थामा जाए
देख कि फिर कोई गौरी मां का आंचल खींच न पावे
जागो हिंदुओं ऐसे जागो कि सारा ब्रह्माण्ड जागे
समकित जैन “सारीकेय “