एक तूफान सा आया जीवन में
माणिक्य रूपी हृदय दरारीत हो गई
सदियों पहले नेत्रों ने जिस भविष्य की कल्पना की थी,वो कल्पना दृष्टि के साथ धारासायी हो गई
हृदय की ये दरार निरन्तर बढ़ती जा रही है
और साथ साथ उसकी पीड़ा भी
हृदय की यह पीड़ा विवश कर देती है कंठ को चित्कारने पर
निरन्तर हो रहे मेरे अनिष्ट से आशा अब रुकना नहीं चाहती,वो मुझे छोड़ जाने को तैयार हैं
उसे बांध के रखा है मैंने ऑरिफिल के धागे से।
संजना शुक्ला~