तन्हा चलना सीख रहा हूं
दीपक सा जलना सीख रहा हूं
मैं तो इक गुमनाम नदी हूं
सागर से मिलना सीख रहा हूं
तिल तिल मर के भी देखा है
खुलकर जीना सीख रहा हूं
शहर में पानी भी महंगा है
आंसू पीना सीख रहा हूं
एक शेर खुद पे लिखना है
इसलिए ग़ज़ल मैं सीख रहा हूं
– भारत मौर्या