अब्दुर्रहमान द्वारा रचित संदेश रासक से प्रभावित होकर
तुम्हारे जाने के बाद,
इन दिनों बहुत कमजोर पड़ गयी हूँ।
हंसी बिखेरने वाले लब
ऐसे सूखे पड़े हैं
जैसे मुरझाया हुआ गुलाब का फूल।
ओष्ठ काले हो गये हैं,
जैसे दिख रहा हो कोई काला जामुन।
गाल पचक गये हैं,
जैसे पचका दिये गये हो
कोई फुलाया हुआ बैलून।
आंखों के नीचे कालीन छा गयी,
जैसे चांद में लगा हो कोई ग्रहण।
बाल अत्य़धिक मात्रा में झड़ गये हैं,
जैसे झड़ गये पत्ते, पतझड़ में।
चेहरों की रौनक खो गयी है,
जैसे धुंध में गुम हो गया कोई रंग।
हर क़दम थकान महसूस करती है
जैसे बर्फीली राहों पर चला हो कोई पथिक।
आवाज़ में अब वह गूंज नहीं रही,
जैसे लहरें विहीन हो गया हो कोई समुद्र।
तुम्हारे बगैर जग सुना सा लगता है
जैसे वीरानियों में अकेला खड़ा हो कोई शहर।
अब मेरा अस्तित्व अधूरा-सा लगता है,
जैसे पत्ते रहित एक सूखा पेड़।
Viñi ✍🏻