**दूरी एक मज़बूरी**
अब वो पटाखों की लड़ियां नहीं दिखती,
नन्हे हाते में फुलझडियां नहीं दिखती,
वक्त तो बहुत है मेरे पास मगर,
अब वो खुशियों की घड़ियां नहीं दिखती,
दिवाली पर मां की नई साड़िया नहीं दिखती,
अब वो आंगन में खेलती गुड़िया नहीं दिखती,
वक्त तो बहुत है मेरे पास मगर,
अब वो खुशियों की घड़ियां नहीं दिखती,
अब वो डाल की चिड़िया नहीं दिखती,
वो पुराने घर की सीढ़ियां नहीं दिखती,
वक्त तो बहुत है मेरे पास मगर,
अब वो खुशियों की घड़ियां नहीं दिखती,
अब वो अनुभवी पीढ़ियां नहीं दिखती,
हाथो पर पढ़ने वाली चढ़िया नहीं दिखती,
वक्त तो बहुत है मेरे पास मगर,
अब वो खुशियों की घड़ियां नहीं दिखती,
अब वो बचपन को जोड़ने वाली कड़ियां नहीं दिखती,
वो प्रेम भरी रुकावटों की हथकड़ियां नहीं दिखती,
वक्त तो बहुत है मेरे पास मगर,
अब वो खुशियों की घड़ियां नहीं दिखती।
मेरी आंखों में किसी बात का डर नही दिखता,
मगर अब वो खुशियों का मंजर नही दिखता,
बोहोत सी इमारतें तो दिखती है मुझे,
मगर अब वो गांव का घर नही दिखता,
अब वो मां के प्रेम का सागर नही दिखता,
वो पहले जैसा पिता का सबर नही दिखता,
बोहोत सी इमारते तो दिखती है मुझे,
मगर अब वो गांव का घर नही दिखता।
~Radheshwar