खूबसूरत डार होती बेटियाँ
फ़िर भी क्यों आज़ार होती बेटियाँ

प्रेम से दहलीज़ को रचती हुई
ख़ुद से ही बेज़ार होती बेटियाँ

माँ की पीड़ा को समझती लाडली
माँ की इक दुर – बार होती बेटियाँ

बेटा बेटी दोनों ही औलाद हैं
क्यों ना फ़िर मुख्तार होती बेटियाँ

दो घरों को करती रोशन सब्र से
प्रेम का अनवार होती बेटियाँ

भ्रूण हत्या गर्भ में जिसका हुआ
ऐसी भी लाचार होती बेटियाँ

उनके अस्मत पर निगाहें गिद्ध सी
ऐसों से दो चार होती बेटियाँ

बेड़ियों में भी जो खुल कर उड़ सके
ऐसी इक फनकार होती बेटियाँ

प्रीती एच प्रसाद ✍️


 

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