मेरे बसंत मन भाया है ,बागों में बौर आया है।।

तनमन पे प्रेम रंग छाया है,बागों में बौर आया है।।

 

सरसों की डाली भी खेतों में लहक रही

गेहूँ की गदराई बाली भी महक रही

अरसी के सर पे है सोनें का ताज़ रखा

अमुवा की डाली पे कोयलिया थिरक रही

सूरज नें घूंघट हटाया है,बागों में बौर आया है।।

तनमन पे प्रेम रंग छाया है,बागों में बौर आया है।।

 

घर की मुडरियां पे महरनियाँ बोल रही

अंगना में दादी माँ मीठा रस घोल रही

होली में कितनें ही प्रेमी मनमीत मिले

गोरी(राधा)झरोखे से घूंघट पट खोल रही

राधा को श्याम रंग भाया है,बागों में बौर आया है।।

तनमन पे प्रेम रंग छाया है,बागों में बौर आया है।।

 

चकवा और चकवी की कैसी है प्रीत लिखूँ

भंवरे का राग और दादुर के गीत लिखूँ

चातक दल घुमड घुमड मन में उमंग भरे

तरुवर की छाँव बैठ विरहन के गीत लिखूँ

कन्हाँ नें बंशी बजाया है,बागों में बौर आया है।।

तनमन पे प्रेम रंग छाया है,बागों में बौर आया है।।

 

  •                   ~सूरज सीतापुरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *