भरत माता की जयकार लगायेंगें
जन गन मन अधिनायक जय हे गायेंगें
हैं पृथ्वीराज़ लक्ष्मीबाई
हैं वीर शिवाजी मतवाले
हिन्दू मुस्लिम हो सिक्ख कोई
सब भारत के रहनें वाले
ना पाप हृदय में पलता हो
बस प्यार उमंगें भरता हो
पावन सरिता जहाँ गंग बहे
मंदिर मस्जिद और देवालय
लाल किले पे जब जब ध्वज लहरायेंगे
जन गन मन अधिनायक जय हे गायेंगें
है अन्न जहाँ जीवन दाता
और दूजा जीवन पानी है
ऋषि मुनियों की जहाँ तपस्थली
भारत की यही निसानी है
इतिहास गवाही देता है
अरियों नें जब भी ललकाराराणा प्रताप सिर काट – काट
करता फिर सफल जवानी हैआज जुबानी फिर गाथा दोहरायेंगेंजन गन मन अधिनायक जय हे गायेंगें
है दृढ निश्चय संकल्प यही
हम फिर परिवर्तन लायेंगें
थल को अम्बर को हम
फिर भूतल आज बनायेंगे
सन इकहत्तर में टेके थे
घुटनें ये तुम मत भूलो
भारत माता की रक्षा हित
हम फिर समसीर उठायेंगे
अंधियारों में फिर से दीप जलायेंगें
जन गन मन अधिनायक जय हे गायेंगें