मतलबी बातें

अब ख्वाब बुन कर सोता हूँ;
आँखे मिच कर रोता हूँ;
अश्क दिख न जाए मेरे;
मैं खुद से भागा- भागा रहता हूँ ।।1।।

मदद के नाम पर धोके खाए हैं;
यादों के हाथ से थपड़ खाए हैं;
जी-हुज़ूरी करते थे जिनसे;
उसने भी हमे चसमे पहनाये हैं ।।2।।

रोग हसने का लिया है;
खुद के आसुँ एक पल को रुकते नहीं;
साथ निभाने का वादा देकर;
काम किसीके आते नहीं ।।3।।

खुदगर्जो सी बातें हमारी;
होठ दबा कर वादे करते हैं;
मन में चलता कुछ और है;
मुह और जबान से हम कहते कुछ और हैं।।4।।

हम अंसुना करते हैं;
कह के जबान पर;
सुनते हर लफ्ज़ हैं सबकी;
करते अपनी विचार की हैं।।5।।

तफ्तीश निगाहों से करके;
भरोसे की आंच पर खुद को सेकता हैं;
मतलबी क्या कहें गैरों को;
हम अपने यार को बाटने से जलते हैं ।।6।।

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