आज के फ़िलबदी मिसरा पर मेरी ग़ज़ल
इक़रार कर लिया कभी इनकार कर दिया
रुसवा मुझे क्यों यूं सरे बाज़ार कर दिया
जब दो क़दम भी साथ मेरे चल सका न वो
हमने भी साथ चलने से इनकार कर दिया
सारे जहां के सामने रुसवा किया मुझे
नज़रों में खुद की मुझको गुनहगार कर दिया
ठोकर जो खाई प्यार की राहों में उम्र भर
तुमने मेरे ख़्याल को बेदार कर दिया
आया नज़र में कुछ भी न हमको जहान में
चाहत का तूने ऐसा तलबगार कर दिया
दिल में उतर के मेरी निगाहों पे छा गया
उसने मेरे वजूद को गुलज़ार कर दिया
शिकवा है मुझको आज भी इस बात का कलीम
बदनाम तूने मुझको मेरे यार कर दिया
कलीम जाफरी कानपुर
वाह।।