- 🪷 युग माँग रहा है ‘परिवर्तन’🪷
हे पार्थ! उठो,
जाओ देखो;
इस युग के जलमय नयनों को।
हे बंधु! उठो,
अब दौड़ चलो;
गाण्डीव थाम रणभूमि को।
करना है तुमको एक सृजन,
युग मांग रहा है परिवर्तन।
हे पृथापुत्र!,
भयभीत न हो;
तुम लक्ष्य साध बस कर्म करो।
कौन्तेय! उठो,
चिंतित मत हो;
जब फल तेरे वश में न हो।
तुम कर्म करो,
छोड़ो चिंतन;
परिणाम का तज दो आकर्षण,
युग को बदलो अब नवयुग में,
युग माँग रहा है परिवर्तन।
——- अनुभव अवस्थी “उद्देश्य”
अद्भुत सृजन 👏