रात समझ आई किसको ?

रात समझ आई किसको 

  • सुबह की उम्मीद या फिर 
  • दिन बीतने का इंतज़ार 

कहते हैं लोग इंसान का स्वभाव नहीं बदलता

तो क्या हम ये मान लें कि

ऐसा ही था ये इंसान सदा से

बस हमने पहचानी देर से।

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