दिन ने समेट लिए है-

पंख अपने

सुनहरी सांझ ले रही है

बिदा

सूरज की आखिरी-

चमकीली किरन से

लिख दो तुम-

मेरा नाम-

बादल के फीके आँचल पर।

तुम्हें शायद ही याद रही हो

ये इंद्रधनुषी सांझे

पर,

खामोश नीली रातों में

याद करके तुम्हें

मैं कुतरती रहूँगी

नाखून।

    अपनी छोटी लगने वाली

    जिंदगी का

    लम्बा सफर

    तैय किया है-

    तुम्हारे साथ।

    इस सफर के यादें

    समेटकर

    मैं निहारती रहूँगी

    हर सांझ

     और 

     अपने नाम बादल के टुकड़े पर

      देखकर

      हल्के से मुस्करा दूंगी–

      तुम्हें याद करके।।

             डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’

                       बैतूल, म.प्र.

 

 

 

 

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