नदियां कुछ नहीं छोड़ती है।
सब कुछ बहा ले जाती है।
जब वह अपनी मर्यादा की सीमा लांघती है।
न किसी की प्रार्थना,न विनती सुनती है।
जो भी रास्ते में आता है,
उसे अपने अंदर समाहित कर लेती है।
कौन विलख रहा है ,किस की रुहें कांप रही है।
न किसी पर दया भाव दिखलाती है।
नदियां कुछ नहीं छोड़ती है
सब कुछ बहा ले जाती है।
मानव जब इससे खिलवाड़ करता है।
तब ये शांत रहती है।
यातनाएं जब हद से ज़्यादा बढ़ती है।
तब ये अपना रौद्र रूप दिखलाती है।
जिस राह चल देती है।
तबाही का कहर बरसाती है।
नदियां कुछ नहीं छोड़ती है।
सब कुछ बहा ले जाती है।