तुम चले गए
किन्तु तुम्हारी स्मृति शेष रह गई
वर्षों पहले किसी पुस्तक में रखी गई
सूखे फूल की तरह।
तुम्हारी कहीं गई बातें
दुहराया करती हूं किसी विषय के
भूले पाठ्यक्रम की तरह।
तुम ही बताओ ना
अब इन स्मृतियों का क्या करें
जो प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
मेरे ज़हन में हमेशा चुभते रहते हैं
किसी नासूर की तरह?
Viñi ✍️ 🥹
मिलन का मत नाम लो, मैं विरह में चिर हूँ
~महादेवी वर्मा