नैन करते हैं वंदन चले आइये
मन में होता है क्रंदन चले आइये
श्याम सुनकर हमारी विरह वेदना
तोड़कर सारे बंधन चले आइये
ब्रज की माटी भी तुमको पुकारा करे
हर घड़ी तेरा रस्ता निहारा करे
ब्रज की माटी को माटी ना समझो मोहन
ब्रज की माटी है चंदन चले आइये
ग्वाल भी रो रहें गाय भी रो रहीं
सारी सखियां भी अपना धिरज खो रहीं
नंद बाबा के प्यारे दुलारे हो तुम
मां यशोदा के नंदन चले आइये
भेजा है तुमने उद्धव को लेने खबर
वो दिखाते हमे योग की है डगर
बात उद्धव की हमको ना आती समझ
खुद ही समझाइए और चले आइये
प्रेम का एक दीपक जलाए हुए
बैठी है आश कब से लगाए हुए
आपको प्रेम हमसे कदाचित नहीं
राधिका के लिए ही चले आइये
वेदनाओं की अग्नि से जल जायगे
प्राण लगता जैसे निकल जायगे
याचना है यही बस हे प्रियतम सुनो
अब चले आइये बस चले आइये
– भारत मौर्या