मुसाफिर हूँ मै ज़िंदगी जी रहा हूँ
खुली ये दिसाएं ये ठंढी हवाएं
उठी पीर मन में दबी मेरी आहें
कई शूल बिखरे कठिन ये डगर है
न मंज़िल है कोई ये लम्बा सफर है
कई शोर हैं मेरे एकांत मन में
कई शोर धूमिल हैं बहती पवन में
कई शोर आँखों से बहनें लगे हैं
कई शोर अधरों से कहनें लगे हैं
मै खुद ही खुद का कफन सी रहा हूँ
मुसाफिर हूँ मै ज़िंदगी जी रहा हूँ